पुरुष और स्त्री यह सिक्के के दो पहलू हैं जो हमेशा एक दूसरे के साथ रहते हैं। फिर भी! एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं पुरुष और स्त्री!
पुरुष में पुरुषत्व का गुण होता है और स्त्री में मातृत्व प्रेम का गुण होता है।
जहां पुरुष अपने मस्तिष्क से ताकतवर होता है उसका अपने मन मस्तिष्क पर कंट्रोल होता है वही स्त्री अपने हृदय से ताकतवर होती है। अपने मातृत्व स्वभाव के कारण प्रेम के गुण के कारण अपने हृदय पर उसका कंट्रोल होता है
महिलाएं अपने हृदय से पुरुष की गलतियों को माफ कर देती है और ऐसी ही अपेक्षा वह पुरुष से भी चाहती है लेकिन वहीं दूसरी और पुरुष क्योंकि हृदय से कमजोर होता है। वह मस्तिष्क से ताकतवर होता है। मन मस्तिष्क पर अपना कंट्रोल होता है इसी वजह से वह। महिला की गलतियों को भूल तो सकता है लेकिन उसे कभी माफ नहीं कर पाता और इसी तरह दोनों एक दूसरे
से अपेक्षाएं करते हैं। पुरुष चाहता है जब मैं उसकी गलतियां भूल सकता हूं तो वह क्यों नहीं भूल सकती। इस्त्री चाहती है जब मैं उसे माफ कर सकती हूं तो वह क्यों नहीं माफ कर सकता और इसी तरह से यह द्वंद युद्ध चलता रहता है।
जहां पुरुष। नरम स्वभाव का होता है, सॉफ्ट हार्टेड होता है। पुरुष अपने मस्तिष्क अपने विचारों से मजबूत होता है
तथा दिल से कमजोर होता है और इसी के चलते। पुरुष भूल तो जाते हैं पर कभी माफ नहीं कर पाते।
वही महिलाएं अपने दिल से मजबूत होती है महिलाओं में विचारों की क्षणिकता पाई जाती है वहीं महिलाएं माफ तो कर देती है पर कभी भूल नहीं पाती ।
और यहीं से शुरू होता है पुरुष और महिला का आपस में द्वंद।
पुरुष कहता है जब मैं सब कुछ भूल सकता हूं। फिर तुम क्यों नहीं? क्योंकि पुरुष मस्तिष्क से मजबूत होता है। इसीलिए वह अपने आप पर काबू कर सकता है वह चीजों को भुलाने की क्षमता रखता है। वह जो स्त्रियों की गलती है उसको भूल कर आगे बढ़ने की सोचता है वही महिला पलटकर जवाब देती है जब मैं सब कुछ माफ कर सकती हूं। फिर तुम क्यों नहीं? महिलाएं सॉफ्ट हार्टेड होती है महिलाओं का अपने दिल पर पकड़ मजबूत होती है। और इसी वजह से वह अपने दिल से पुरुष को माफ कर सकती है और वही वह पुरुष से भी यही अपेक्षा करती है कि जब मैं माफ कर सकती हूं तो तुम क्यों नहीं माफ कर सकते, लेकिन पुरुष भूल तो जाते हैं, कभी माफ नहीं कर पाते।
दोनों का मूल स्वभाव अलग है एक अपने दिल की रानी है तो दूसरे अपने मस्तिष्क का राजा है दोनों का। अपने अपने स्तर पर अपनी अपनी पकड़ मजबूत है वहा दोनों यही सोचते हैं कि वह मेरे जैसा क्यों नहीं है? पुरुष उस महिला को आदरणीय बनाना चाहता है जो उसकी गलतियों को भूल जाए जो अपने अतीत को भूल कर मुझ में समा जाए,। वहीं दूसरी ओर महिलाएं कहती है। पूजा तो उसी की करूंगी जो मेरी गलतियों को माफ कर दे वही विशाल है।
द्वंद जारी रहता है महिला का मन समुंदर है न जाने उसमें क्या क्या छुपा है, पुरुष की जीद है महिला के मन के उस समुंदर में सिर्फ वही रहे। बस चले तो पुरुष पुरे समुंदर को पी जाए। खाली कर दें और उसमें खुद समा जाए।
महिला की जिद है पुरुष के हृदय को इतना छोटा कर दे इतना छोटा कर दें कि उसमें सिर्फ वह अकेले ही राज करे कोई और उसमें ना आ पाये । महिला के मन में बहुत कुछ पर हृदय में सिर्फ तुम ही हो । पुरुष कहे मन में सिर्फ तुम ही तुम पर हृदय में बहुत कुछ ।
पुरुष का हृदय विशाल होता है। वह सबको समाये रहता है।
महिला का मन विशाल होता है। पुरुष महिला के मन में सिर्फ खुद को देखने का बेकरार रहता है। वहीं दूसरी ओर महिला पुरुष के हृदय में सिर्फ और सिर्फ खुद को देखने के लिए बेकरार होती है। यह खेल सदियों से चलता आ रहा है और आगे भी सदियों तक चलेगा।
पर मेडिकल साइंस यह कहता है कि यह जो खेल है यह दोनों के हार्मोन जिसे मेल और फीमेल हार्मोन भी कहते हैं, आधारित होता है अगर यहां हम भोलेनाथ और पार्वती जी के अर्धनारीश्वर शरीर का कंसेप्ट रखें मतलब थोड़ा तुम मेरी तरह सोचो थोड़ा हम तुम्हारी तरह सोचे और इस तरह से देखो आगे सफर सुहाना हो सकेगा।
दोनों साथ-साथ चलेंगे। कदम से कदम मिलाकर चलेंगे और जीवन प्रेम भरी दास्तां की तरह कटता चला जाएगा। इसी को अर्धनारीश्वर का
कंसेप्ट या नियम कहां है।
धन्यवाद!
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